'अंदाज़'-ए-यूसुफ़!
'अंदाज़' (१९४९) में नर्गिस, राज कपूर और दिलीपकुमार..त्रिकोणीय प्रेम! |
'अंदाज़' (१९४९) के फ़िल्मकार मेहबूब खान. |
ट्रैजेडी किंग दिलीपकुमार, आशिक़मिजाज राज कपूर और इन दोनों के दिलों में समायी थी..हसीन नर्गिस!
यहाँ इश्क़ का इज़हार कर नहीं पा रहे दिलीपकुमार अपनी गंभीर मुद्रा में प्यार की उदात्त भावना संभाले हुए थे..तो दूसरी तरफ दिलफेंक राज कपूर प्यारका जाल सहजता से बिछाने में माहीर थे!
मेरे इसमें से सबसे दो पसंदीदा सीन्स है..
एक में नर्गिस दिलीपकुमार को कहेती है.. "याद है मैंने कहाँ था की बिजली तो जिस पर गिरने वाली थी वो गिर चुकी है!"
उसपर दिलीपकुमार साँस को अंदर लिए आँखों में मायूसी लेकर बोलता है..
"हाँ बिलकुल याद है..और तुमने ये भी कहाँ था की कोई ग़लतफ़हमी न कर बैठना!"
दूसरे सीन में राज कपूर और नर्गिस हंसी-मजाक करते हुए पार्टी में आते है और..
वहां मौज़ूद अंदर से टूट चूका दिलीपकुमार अपनी प्यार का दर्द समायी निगाह नर्गिस की तरफ करके बोलता है ".और हम यहाँ आपके इंतज़ार में मुश्ताक़ हो बैठे हैं!"
इन दोनों सीन्स में यूसुफ़साहब ने दिल हिला दिया था!!
बाद में १९६४ में राज कपूर ने इस रोमैंटिक प्लॉट को लेकर 'संगम' बनायी थी, जिसमें राजेंद्र कुमार और वैजयंतीमाला के साथ खुद उसी भूमिका में आये थे! इस फ़िल्म ने व्यावसायिक सफलता तो हासिल की; लेकिन भावनाओं का वह दिल छू लेने वाला 'अंदाज' ला न सकी!
मेहबूबसाहब का वह 'अंदाज़' चोटी का था..जो कभी भूलेंगे नहीं!!
'अंदाज़' (१९४९) में नर्गिस और दिलीपकुमार एक भावुक क्षण में! |
मेरे इसमें से सबसे दो पसंदीदा सीन्स है..
एक में नर्गिस दिलीपकुमार को कहेती है.. "याद है मैंने कहाँ था की बिजली तो जिस पर गिरने वाली थी वो गिर चुकी है!"
उसपर दिलीपकुमार साँस को अंदर लिए आँखों में मायूसी लेकर बोलता है..
"हाँ बिलकुल याद है..और तुमने ये भी कहाँ था की कोई ग़लतफ़हमी न कर बैठना!"
'अंदाज़' (१९४९) में नर्गिस, राज कपूर और लाजवाब दिलीपकुमार! |
वहां मौज़ूद अंदर से टूट चूका दिलीपकुमार अपनी प्यार का दर्द समायी निगाह नर्गिस की तरफ करके बोलता है ".और हम यहाँ आपके इंतज़ार में मुश्ताक़ हो बैठे हैं!"
इन दोनों सीन्स में यूसुफ़साहब ने दिल हिला दिया था!!
बाद में १९६४ में राज कपूर ने इस रोमैंटिक प्लॉट को लेकर 'संगम' बनायी थी, जिसमें राजेंद्र कुमार और वैजयंतीमाला के साथ खुद उसी भूमिका में आये थे! इस फ़िल्म ने व्यावसायिक सफलता तो हासिल की; लेकिन भावनाओं का वह दिल छू लेने वाला 'अंदाज' ला न सकी!
मेहबूबसाहब का वह 'अंदाज़' चोटी का था..जो कभी भूलेंगे नहीं!!
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