तलत महमूद और मदन मोहन ने इस गीत में जहान आरा (1964) से उत्कृष्टता प्राप्त की । इस फिल्म में मुख्य तेरी नज़र का सुरूर हम और तेरी आंखें अनसो और तलत और वो चुप रहें तो मेरे और हल -ए-दिल ये नहीं सुनैया लता सहित कई बेहतरीन गाने थे ।
जहान आरा शाहजहाँ की बेटी थी और कहानी मिर्ज़ा यूसुफ़ चेंजज़ी के लिए उसके प्यार के बारे में है, जिसे उसे मुगल राजकुमारी के रूप में छोड़ना पड़ा था। इसमें पृथ्वीराज कपूर ने शाहजहाँ की भूमिका निभाई थी और माला सिन्हा ने जहाँआरा की भूमिका निभाई थी और भारत भूषण ने मिर्ज़ा की भूमिका निभाई थी। संगीत मदन मोहन द्वारा रचित है और गीत राजिंदर कृष्ण द्वारा हैं।
हालांकि, फिल्म बड़ी फ्लॉप रही।
ऑडियो लिंक
फिर वोही शाम वही ग़म वही तनहाई है
दिल को समझाने तेरी याद चली आई है
फिर तव्वुर आपकी पहलू में बिठा करेगा
फिर गया वक़्त घड़ी भर को पलटेंगे
दिल बहल करेंगे आखिरकार ये तो नायइ है
फिर वोही शाम -
जाने अब तुझ से मुलाक़ात हो न हो के कभी
जो अधूरी रहे वो बात कभी हो के न हो
मेरी मंज़िल तेरी मंज़िल से बिछड़ आई है
फिर वोही शाम ...
फिर तेरे ज़ुल्फ़ के रुखसार की बातें होंगी
हिज्र की रात मगर प्यार की बातें होंग
मुहब्बत में तड़पने की क़सम फिर खाई है
फिर वोही शाम ...
जहान आरा शाहजहाँ की बेटी थी और कहानी मिर्ज़ा यूसुफ़ चेंजज़ी के लिए उसके प्यार के बारे में है, जिसे उसे मुगल राजकुमारी के रूप में छोड़ना पड़ा था। इसमें पृथ्वीराज कपूर ने शाहजहाँ की भूमिका निभाई थी और माला सिन्हा ने जहाँआरा की भूमिका निभाई थी और भारत भूषण ने मिर्ज़ा की भूमिका निभाई थी। संगीत मदन मोहन द्वारा रचित है और गीत राजिंदर कृष्ण द्वारा हैं।
हालांकि, फिल्म बड़ी फ्लॉप रही।
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फिर वोही शाम वही ग़म वही तनहाई है
दिल को समझाने तेरी याद चली आई है
फिर तव्वुर आपकी पहलू में बिठा करेगा
फिर गया वक़्त घड़ी भर को पलटेंगे
दिल बहल करेंगे आखिरकार ये तो नायइ है
फिर वोही शाम -
जाने अब तुझ से मुलाक़ात हो न हो के कभी
जो अधूरी रहे वो बात कभी हो के न हो
मेरी मंज़िल तेरी मंज़िल से बिछड़ आई है
फिर वोही शाम ...
फिर तेरे ज़ुल्फ़ के रुखसार की बातें होंगी
हिज्र की रात मगर प्यार की बातें होंग
मुहब्बत में तड़पने की क़सम फिर खाई है
फिर वोही शाम ...
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