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Showing posts from February, 2019

तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले…

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  भारतीय फिल्म संगीत में सचिनदेव बर्मन, मदन मोहन, शंकर-जयकिशन, कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और राहुलदेव बर्मन जैसे दिग्गज संगीतकारों का डंका बज रहा था। ऐसे समय में आई फिल्म ‘चोर मचाए शोर’ का संगीत लीक से हटकर श्रोताओं को नया ‘टेस्ट’ देने वाला था। इस फिल्म के लिए संगीत रचनाएं लेकर आए थे तब के नए संगीतकार रवींद्र जैन। इस फिल्म का गीत  ‘ले जाएंगे..ले जाएंगे दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे…’ की लोकप्रियता आज तक बरकरार है। इसी फिल्म का एक अन्य ‘गीत घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूं मैं…’  किशोर कुमार के श्रेष्ठ गीतों में से एक है। वास्तव में रवींद्र जैन की प्रतिभा ने ही उन्हें भारतीय फिल्म संगीत के क्षेत्र में भारी प्रतिस्पर्धा के बीच ऊंचा मुकाम दिलाया। ➡️अमिताभ के साथ-साथ करियर की डगर   1973 में फिल्म ‘सौदागर’ आई थी। यह फिल्म जहां अमिताभ बच्चन के करियर की शुरुआती फिल्म थी वहीं रवींद्र जैन के करियर की भी शुरुआती फिल्म थी। अमिताभ और नूतन की यह फिल्म बहुत सफल नहीं रही लेकिन इसका संगीत पसंद किया गया। इस फिल्म के गीत ‘हर हंसी चीज का मैं ...

हुए हैं तुम पे आशिक़ हम, भला मानो बुरा मानो

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Mere Sanam  (1965) was a film produced by G P Sippy - with great music by O P Nayyar. It was a formula film with predictable storyline, but the music and location ensured its success at the box office. Lyrics are by Majrooh Sultanpuri. हुए हैं तुम पे आशिक़ हम, भला मानो बुरा मानो ये चाहत अब ना होगी कम, भला मानो बुरा मानो .... ये रूठी सी नज़र ये माथे की शिकन - २ लिबास-ए-रंग में ये बल खाता बदन है प्यासा प्यार का ये सारा बाँकपन - २ हो हो हो प्यार क्या है जान-ए-तमन्ना अब तो पहचानो हुए हैं तुम पे ... .... अजी इक हम तो क्या, हो तुम ऐसे हसीन - २ फ़रिश्ता भी तुम्हे, अगर देखे कहीं तो जन्नत भूल के बहक जाये यहीं - २ हो हो हो प्यार क्या है ... हुए हैं तुम पे ... .... तुम्ही को चुन लिया, नज़र की बात है - २ लिया ग़म आपका, जिगर की बात है हो तुम फिर भी खफ़ा, असर की बात है - २ हो हो हो प्यार क्या है ...

हिंदी फिल्मों का अंग्रेज़ अफ़सर

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टॉम बीच ऑल्टर मसूरी, के निवासी, टॉम ऑल्टर के पूर्वज इंग्लिश और स्कॉटिश थे ।  उनके दादा दादी नवंबर 1916 में ओहियो,से भारत आए, वे मद्रास (अब चेन्नई) पहुंचे। वहां से वह लाहौर गए, वही बस गए। उनके पिता का जन्म सियालकोट में हुआ,जो अब पाकिस्तान में है । भारत के विभाजन के समय उनके दादा दादी जो लाहौर में रहते थे, जबकि उनके माता-पिता राजपुर ( देहरादून और मसूरी के बीच) में रहते थे। यह परिवार इलाहाबाद, जबलपुर और सहारनपुर में भी कई साल रहा था। टॉम ऑल्टर का जन्म 22  जून 1950 को मसूरी में हुआ था । टॉम ऑल्टर ने पढाई मसूरी के वुडस्टॉक स्कूल से पूरी की थी। उनके पिता इविंग क्रिश्चयन कॉलेज इलाहाबाद में इतिहास और अंग्रेजी पढ़ाते थे, और उसके बाद सहारनपुर चले आये कुछ साल वही के एक कॉलेज में पढ़ाते थे। 1954 में, उनके माता-पिता ने राजपुर में आश्रम शुरू किया, जिसे “विशाल ध्यान केन्द्र” कहा जाता था और वे वहां बस गए। सभी धर्मों के लोग अध्ययन और चर्चा के लिए वहां आए। वे शुरू में बाइबिल अध्ययन उर्दू में और बाद में हिंदी में पढ़ते थे (जब 1962 में हिंदी को अपनाया गया था) 18 साल...
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सुप्रसिद्ध गीतकार, संगीतकार व गायक रवीन्द्र जैन को जिनका 9 अक्टुबर 2015 को निधन हो गया। गीत है लता मंगेशकर का गाया फ़िल्म ’राम तेरी गंगा मैली’ का, "एक राधा एक मीरा, दोनो ने श्याम को चाहा..."। रवीन्द्र जैन के जितने सुन्दर बोल हैं इस गीत में, उतना ही सुरीला है उनका इस गीत का संगीत। "तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले, संग गा ले, तो ज़िन्दगी हो जाए सफल", कुछ ऐसा कहा था रवीन्द्र जैन ने फ़िल्म ’चितचोर’ के एक गीत में। ज़िन्दगी, जिसने रवीन्द्र जैन के साथ एक बहुत ही अफ़सोस-जनक मज़ाक किया उनसे उनकी आँखों की रोशनी छीन कर, उसी ज़िन्दगी को जैन साहब ने एक चुनौती की तरह लिया और अपनी ज़िन्दगी को सफल बना कर दिखाया। ज़िन्दगी ने तो उनसे एक बहुत बड़ी चीज़ छीन ली, पर उन्होंने इस दुनिया को अपने अमर गीत-संगीत के माध्यम से बहुत कुछ दिया। रवीन्द्र जैन जैसे महान कलाकार और साधक शारीरिक रूप से भले इस संसार को छोड़ कर चले जाएँ, पर उनकी कला, उनका काम हमेशा अमर रहता है, आने वाली पीढ़ियों को मार्ग दिखाता है। रवीन्द्र जैन के लिखे गीतों की विशेषता यह रही कि उनमें कभी किसी तरह का सस्तापन या चल्ताउ क़िस्म के ब...

रवींद्र जैन

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रवींद्र जैन भारतीय फिल्म संगीत में सचिनदेव बर्मन, मदन मोहन, शंकर-जयकिशन, कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और राहुलदेव बर्मन जैसे दिग्गज संगीतकारों का डंका बज रहा था। ऐसे समय में आई फिल्म ‘चोर मचाए शोर’ का संगीत लीक से हटकर श्रोताओं को नया ‘टेस्ट’ देने वाला था। इस फिल्म के लिए संगीत रचनाएं लेकर आए थे तब के नए संगीतकार रवींद्र जैन। इस फिल्म का गीत  ‘ले जाएंगे..ले जाएंगे दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे…’ की लोकप्रियता आज तक बरकरार है। इसी फिल्म का एक अन्य ‘गीत घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूं मैं…’  किशोर कुमार के श्रेष्ठ गीतों में से एक है। वास्तव में रवींद्र जैन की प्रतिभा ने ही उन्हें भारतीय फिल्म संगीत के क्षेत्र में भारी प्रतिस्पर्धा के बीच ऊंचा मुकाम दिलाया। अमिताभ के साथ-साथ करियर की डगर   1973 में फिल्म ‘सौदागर’ आई थी। यह फिल्म जहां अमिताभ बच्चन के करियर की शुरुआती फिल्म थी वहीं रवींद्र जैन के करियर की भी शुरुआती फिल्म थी। अमिताभ और नूतन की यह फिल्म बहुत सफल नहीं रही लेकिन इसका संगीत पसंद किया गया। इस फिल्म के गीत ‘हर हंसी चीज का मैं तलबगार...

यह दुनिया अगर मिल भी जाये

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यह दुनिया अगर मिल भी जाये साहिर लुधियानवी मशहूर शायर । इनका जन्म लुधियाना में हुआ था और लाहौर  तथा बंबई (1949 के बाद) इनकी कर्मभूमि रही।  साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हयी साहिर है। उनका जन्म 8 मार्च 1921 में लुधियाना के  जागीरदार घराने में हुआ था। हालांकि इनके पिता बहुत धनी थे पर माता-पिता में अलगाव होने के कारण उन्हें माता के साथ रहना पड़ा और गरीबी में गुजर करना पड़ा। साहिर लुधियानवी  की शिक्षा लुधियाना के खालसा हाई स्कूल में हुई।  1939 में जब वे गव्हर्नमेंट कालेज के विद्यार्थी थे अमृता प्रीतम से उनका प्रेम हुआ जो कि असफल रहा। कॉलेज़ के दिनों में वे अपने शेरों के लिए ख्यात हो गए थे और अमृता प्रीतम इनकी प्रशंसक। लेकिन अमृता प्रीतम के घरवालों को ये रास नहीं आया क्योंकि एक तो साहिर मुस्लिम थे और दूसरे गरीब। बाद में अमृता के पिता के कहने पर उन्हें कालेज से निकाल दिया गया। जीविका चलाने के लिये उन्होंने तरह तरह की छोटी-मोटी नौकरियाँ कीं। 1943 में साहिर लाहौर आ गये और उसी वर्ष उन्होंने ...

मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे

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गीत – मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे फ़िल्म – ग़ज़ल ( 1964 ) संगीतकार – मदन मोहन गीतकार – साहिर लुधियानवी गायक – मोहम्मद रफ़ी संगीतकार मदन मोहन से जुड़ी कुछ यादें – फ़िल्म ‘ जहांआरा ‘ ( 1964, भारत भूषण , माला सिन्हा ) अभिनेता , निर्माता ओम प्रकाश और निर्देशक विनोद कुमार की फ़िल्म थी और वे चाहते थे कि इस फ़िल्म के सब गीत मोहम्मद रफ़ी गायें । मदन मोहन को लगता था कि कुछ गीत तलत महमूद की आवाज़ में बेहतर लगेंगे । मदन मोहन अपनी बात पर दृढ़ थे और उनकी बात स्वीकार्य न होने पर फ़िल्म छोड़ने के लिये भी तैयार थे । आख़िर उनकी बात मान ली गयी और – फिर वही शाम वही ग़म वही तन्हाई है , तेरी आँख के आँसू पी जाऊँ , मैं तेरी नज़र का सुरूर हूँ और अय सनम आज ये क़सम खायें  जैसे दिलकश गीत तलत महमूद की आवाज़ में रिकार्ड किये गये । ‘ जहांआरा ‘ के लिये एक क़व्वाली चारों मंगेशकर बहनों की आवाज़ में रिकार्ड की गयी थी । परन्तु वह फ़िल्म में नहीं रखी गयी , ना ही उसका रिकार्ड बना । वह ऐतिहासिक गीत गुमनामी में खो गया । लता मंगेशकर , मीना मंगेशकर ( खड़ीकर ), आशा भोंसले और उषा मंगेशकर का एक साथ गाया और ...
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फिल्म धूल का फूल (1959) से सुधा मल्होत्रा ​​का एक अद्भुत गीत। संगीत एन दत्ता का है। फिल्म में नंदा, राजेंद्र कुमार, माला सिन्हा और अशोक कुमार थे।  गीत साहिर लुधियानवी के हैं। सुधा मल्होत्रा ​​और साहिर में एक दिलचस्प रिश्ता था। ऐसा कहा जाता है कि जब साहिर एक पार्टी में अपने पति के साथ सुधा मल्होत्रा ​​के साथ स्पॉट हुए थे, तब उन्होंने एक कविता लिखी थी जो बाद में गुमराह में शामिल हो गई - चलो एक बार फिर से। कासे कहूँ मन की बात हाँ कासे कहूँ मन की बात बैरी बलमवा दुखिया कर गये सुख को ले गये साथ कासे कहूँ मन की बात हाँ कासे कहूँ मन की बात हर आहट पे आँख लगाये  आ  हर आहट पे आँख लगाये बैठी रही मैं सेज सजाये  बेदर्दी ने रैन बितायी सौतनिया के साथ कासे कहूँ मन की बात हाँ कासे कहूँ मन की बात प्रीत भी झूठी मीत भी झूठे  आ प्रीत भी झूठी मीत भी झूठे ठेस लगी और सपने टूटे  नैनन जल में डूब के रह गई मधुर मिलन की राथ कासे कहूँ मन की बात हाँ कासे कहूँ मन की बात बैरी बलमवा दुखिया कर गये सुख को ले गये साथ कासे कहूँ मन की बात 

’नये चांद होगा न तारे रहेंगे'

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’नये चांद होगा न तारे रहेंगे  ’नये चांद होगा न तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे‘ गीत भले ही लोगों के जज्बातों को सामने लाने में सक्षम हो लेकिन यह बात भी सच है कि लोग गीत गुनगुनाते जरूर है मगर यह जानने की कोशिश नहीं करते कि उसे लिखा किसने है। मसलन ’न ये चांद होगा, न तारे रहेंगे..‘, ’देखो, वो चांद छुप के करता है, क्या इशारे..‘,’सुभान अल्ला, हंसी चेहरा, ये मस्ताना अदाएं खुदा महफूज रखे हर बला से‘ आदि को ही लें, आज भी गुनगुनाए जाते है। इन गीतों को लिखने वाले थे एस.एच. बिहारी। वे थे तो सादा तबीयत सा दिखने वाले लेकिन ऐसे रूमानी थे कि अलग अलग लफ्जों में अलग-अलग खूब सूरत रंगों में रंगे उनके गीत हमें आज भी हसीन अहसास देते है। बिहार के आरा जिले में 1922 में शम्सउल हुदा बिहारी की पैदाइश हुई। कॉलेज की पढ़ाई कोलकाता में हुई जहां प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल की। वहां वे बंगाली भी सीख गए और पहले से हिंदी और ऊर्दु तो आती ही थी। उस दौर में फुटबॉल इतने बेहतरीन खेलते थे कि मोहन बगान की टीम में भी चुने गए। लिखने-पढ़ने और शायरी का शौक भी था। बंबई में एक भाई पहल...

जिनकी मौत बन गयी राज़

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जिनकी मौत बन गयी राज़ दिव्या भारती  हिन्दी फिल्मों की  अभिनेत्री थीं,जिनकी अभिनय विवि धता से उन्हें अपनी पीढ़ी के सबसे चित्ताकर्षक युवा अभिनेत्री होने का गौरव मिला। 90 के दशक से अपनी करियर की शुरुवात करने वाली दिव्या ने कई प्रकार के व्यावसायिक रूप से सफल गति चित्रों में अभिनय किया है। बॉलीवुड चकाचैध और संभावना से भरी ऐसी दुनिया, जहां कई रहस्य अब भी बरकरार हैं जिसे समझा नहीं जा सका। दिव्या भारती की मौत की गुत्थी ऐसे ही रहस्यों में शुमार है. दिव्या भारती कमाल की खूबसूरत और जबरदस्त अदाकारा थी जिन्होंने कम समय में ही दर्शकों का दिल जीत लिया था। दिव्या भारती का जन्म 25 फरवरी 1974 में हुआ था।  90 के दशक में काम करने वाली इस अदाकारा ने बहुत जल्द ही सफलता का स्वाद चखा दिव्या ने हिंदी फिल्मों के साथ कई अन्य भाषाओं की फिल्मों में भी काम किया है । दिव्या ने अपने छोटे से फिल्मी करियर में 14 हिंदी फिल्मों में काम किया और सात दक्षिण भारतीय फिल्में की दिव्या भारती की फिल्मों के कई गाने अब भी दर्शकों की जुबान पर हैं। दिव्या ने मई 1992 को साजिद नाडिवाला से शादी क...

तलत महमूद

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तलत महमूद  पार्श्वगायक और फिल्म अभिनेता थे। इन्होंने गजल गायक के रूप में बहुत ख्याति प्राप्त की थी। शुरुआत में उन्होंने तपन कुमार के नाम से गाने गाये थे। बेहद सौम्य और विनम्र स्वभाव के तलत महमूद के लिए संगीत एक जुनून था, जबकि उनकी अदाकारी ने उन्हें बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार के रूप में पहचान दिलाई। मात्र सोलह वर्ष की उम्र में ही गजल गायक के तौर पर अपने सफर की शुरुआत करने वाले तलत महमूद ने उस जमाने की जानी-मानी अभिनेत्रियों सुरैया, नूतन और माला सिन्हा के साथ भी हिन्दी फिल्मों में अभिनय किया था। उनके योगदान के लिए  1992 में उन्हें पद्मभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया। तलत महमूद का जन्म लखनऊ  के  मुस्लिम परिवार में 24 फरवरी, 1924 को हुआ था। उनके पिता का नाम मंजूर महमूद था। तीन बहन और दो भाइयों के बाद तलत महमूद छठी संतान थे। घर में संगीत और कला का सुसंस्कृत परिवेश इन्हें मिला। इनकी बुआ को तलत की आवाज की लरजिश पसंद थी। भतीजे तलत महमूद बुआ से प्रोत्साहन पाकर गायन के प्रति आकर्षित होने लगे। इसी रुझान के चलते मोरिस संगीत विद्यालय, वर्तमान में भ...

श्रीदेवी

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जिस समय उन्हें करोड़ों लोग चाहते थे उस समय वे बिलकुल अकेली और कंगाल भी थीं मशहूर फिल्म निर्माता रामगोपाल वर्मा ने श्रीदेवी को श्रद्धांजलि देते हुए यह लेख अपने फेसबुक पेज पर अंग्रेजी (हिंदी अनुवाद सत्याग्रह ब्यूरो द्वारा) में लिखा है आप जैसे करोड़ों लोगों की तरह मैं भी मानता था कि वे दुनिया की सबसे सुंदर महिला थीं और हम सभी जानते हैं कि वे हमारे देश की सबसे बड़ी सुपरस्टार थीं और उन्होंने सिल्वर स्क्रीन पर 20 से ज्यादा साल तक राज किया. लेकिन यह कहानी का सिर्फ एक हिस्सा है. उनकी मृत्यु के बाद तरह-तरह की बातें कही जा रही हैं – वे कितनी खूबसूरत थीं, कितनी महान अभिनेत्री थीं और उनकी मृत्यु ने लोगों को कैसे प्रभावित किया है आदि आदि. लेकिन मेरे पास कहने के लिए इससे कुछ ज्यादा है क्योंकि मैंने अपनी दो फिल्मों – क्षणक्षणम और गोविंदा गोविंदा – के दौरान उन्हें करीब से देखा था. श्रीदेवी की जिंदगी इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि किसी सलेब्रिटी का निजी जीवन उससे कितना अलग हो सकता है जैसा वह बाहर से दिखता है. कई लोगों के लिए श्रीदेवी की जिंदगी को आदर्श मानते थे – सुंदर चेहरा, प्रतिभा की धन...

मुझे मेरा प्यार दे दे, तुझे आजमा लिया है

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मोहम्मद रफ़ी और आशा भोसले द्वारा पार्श्वगायन के साथ 60 के दशक के मध्य में एक ओ पी नैयर की रचना- फिल्म हमसाया (1968) से  50 और 60 के दशक में, उनमें से तीन- ओपी नैयर, आशा और रफी ने बड़ी संख्या में महान गीतों पर मंथन किया। हमसाया में जॉय मुखर्जी और शर्मिला टैगोर मुख्य भूमिकाओं में थे। मुझे मेरा प्यार दे दे, तुझे आजमा लिया है  तेरी वफ़ा के आगे मैंने सर झुक लिया है  तुझे पाके खो दिया था, तुझे खोके पा लिया है  जहाँ खांक उड़ रह थी वही घर सजा लिया है  तेरी याद मेरा मंदिर, तेरा प्यार मेरी पूजा  तुझे मैंने इतना पूजा की खुद बना लिया है #JoyMukherjee #SharmilaTagore