देव और नंदा में समय के साथ नजदीकियां बढ़ने लगती हैं पर इसी के साथ साथ देव की पहचान दो अन्य युवतियों, कल्पना (कल्पना) और सिमी (सिमी ग्रेवाल) से भी हो जाती है और वे दोनों भी देव के बेहद करीब आ जाती हैं| देव तीनों के ही नजदीक है पर उसका ध्यान एक कवि के रूप में अपने को स्थापित करने में ज्यादा है जबकि तीनों ही युवतियां चाहती हैं कि देव उनसे प्रेम-निवेदन करे|
आर्थिक रूप से नंदा ही सबसे कमजोर है और वह यही समझती रही है कि उसी जैसी आर्थिक पृष्ठभूमि वाला देव उसी से प्रेम करता है और उसे ऐसा भी कोई संकेत नहीं मिलता देव से कि उसका ऐसा सोचना गलत है| वह देव के प्रेम निवेदन न करने से परेशान हो जाती है और व्याकुलता में एक पिकनिक पर देव के साथ जाती है यह सोचकर कि वहाँ तो देव उसके प्रति प्रेम का इजहार कर ही देगा|
देव से वह किसी न किसी बहाने से उसके दिल की बात पूछना चाहती है और जब बातचीत में देव अपने दिल की बात नंदा से नहीं कहता तब यह गीत शुरू होता है जिसमें नंदा पूछ रही है कि देव के मन में किसी के प्रति प्रेम है तो सही और यह उसकी आँखों से झलकता है पर वह कौन है जो उसके मन और आँखों में बसी हुयी है|
लिखा है तेरी आँखों में किसका अफसाना
देव, नंदा की इस बात को इस तरह से मजाक के रूप में बदल देता है जैसे उसके लिए भी यह एक नयी खबर हो और वह भी गाता है कि अगर नंदा को पता चल जाए तो वह उसे भी बता दे|
अगर इसे समझ सको मुझे भी समझाना
नंदा हार न मानते हुए फिर से देव को सत्य दिखाना चाहती है कि उसके अंदर कुछ है पर दिक्कत यही है कि अंदर किसी के बसे होने का आभास तो मिलता है पर अभी वह भी पूरा पूरा देख नहीं पा रही है| भुट्टा खाते और नज़र बचाते देव को छेड़ते हुए नंदा गाती है
जवां बसा किसी तमन्ना का, लिखा तो है अधूरा सा
देव फिर से इस नए आक्रमण को भी खुद को ऐसा ही आधा-अधूरा बताते हुए टाल जाता है|
कैसे न हो मेरी हर बात अधूरी अभी हूँ आधा दीवाना
अभी भी इथालाकर चलटी नंदा के दुपट्टे के एक सिरे को अपनी पैंट की जेब में खोंस कर चलने में देव को कोई गुरेज नहीं है और देव की ऐसी ही भरमाने वाली हरकतें देख नंदा का धैर्य कुछ चूकता नज़र आता है और वह बात को सीधे सीधे व्यक्तिगत बनाकर पूछ ही लेती ही कि अगर देव के मन में नंदा के लिए कोई भावनाएँ नहीं हैं तो वह फिर क्यों उसके करीब बना रहता है और क्यों उससे नजदीकियां बनाए रखता है?
जो कुछ नहीं तो ये इशारे क्यों ठहर गये मेरे सहारे क्यों
ऐसा गाते गाते वह देव को अपने दुपट्टे को पूरी तरह से देव के इर्द-गिर्द लपेट देती है और उसके दुपट्टे में खुशी खुशी लिपटा हुआ देव अभी भी बात को नंदा के साथ विशेष होने से बचाता है और उसके दुपट्टे के पीछे अपने मुख को छिपाते हुए अभी भी मजाक के स्वर में ऐसा करने को अपने व्यक्तित्व का एक साधारण तत्व बताते हुए कहता है कि ऐसा करना उसकी आदत में शुमार है और उसका ऐसा व्यवहार सिर्फ नंदा के ही साथ नहीं है |
थोड़ा सा हसीनों का सहारा लेकर चलना है मेरी आदत रोज़ाना
नंदा इससे आगे शायद नहीं बढ़ सकती और अब जब वह पहले से हलके स्वर में एक तरह से अंतिम डाव के रूप में देव से पूछती है कि उसकी आँखों में किसका अफसाना लिखा हुआ है तो देव उससे दूर जाती नंदा का दुपट्टा उसके पास फेंककर वही चुनौती भरा राग अलापता है कि अगर नंदा को पता चले तो वह उसे भी बताए|
पास से दौडकर जाते घोड़े के पीछे नंदा चली जाती है तो अकेला रह गया देव अपने भीतर के भाव को कुछ कुछ बाहर लेकर आता है और पहली बार गीत में अपने आप ही सक्रियता दिखाता है|
उसके अंदर से हल्की सी उदासी लिए भाव उमड़ते हैं इस बात की गवाही देते हुए कि उसके अंतर्मन में भी इस प्रेम वाले मसाले को लेकर मंथन चलता रहता है| पर बहुत शीघ्र ही वह संभल जाता है और अपने दिल को आवारा की तरह से इधर उधर भटकने वाला बता कर वह तुरंत ही उसे निर्दोष रूप से बेचारा दर्शाता है|
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