नाइंसाफी का शिकार

नाइंसाफी का शिकार

स्मृति शेष।
सोहराब मोदी प्रसिद्ध अभिनेता, फि़ल्म निर्माता-निर्देशक थे, जिन्होंने हिन्दी की प्रथम रंगीन फि़ल्म ‘झाँसी की रानी बनाई थी। इनको 1980 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सोहराब मोदी का जन्म 2 नवम्बर 1897 में बम्बई में हुआ था।  सोहराब मोदी ने कुछ मूक फि़ल्मों के अनुभव के साथ  पारसी रंगमंच से बतौर अभिनेता के रूप में शुरुआत की थी। सोहराब मोदी का बचपन रामपुर में बीता, जहां उनके पिता नवाब के यहां अधीक्षक थे। नवाब रामपुर का पुस्तकालय बहुत समृद्ध था। रामपुर में ही सोहराब मोदी ने फर्राटेदार उर्दू सीखी। अभिनय की प्रारंभिक शिक्षा उन्हें अपने भाई रुस्तम की नाटक कंपनी सुबोध थिएट्रिकल कंपनी से मिली, जिसमें उन्होंने 1924 से काम करना शुरू कर दिया था। वहीं उन्होंने संवाद को गंभीर और सधी आवाज में बोलने की कला सीखी, जो बाद में उनकी विशेषता बन गयी। कुछ ही समय में वे नाटकों में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाने लगे। ‘हैमलेट और ‘द सोल ऑफ़ डाटर उनके लोकप्रिय नाटक थे जिनमें उन्होंने अभिनय किया।
बाद में उनका परिवार रामपुर से बंबई चला आया। वहां उन्होंने परेल के न्यू हाईस्कूल से मैट्रिक पास किया। जब ये अपने प्रिंसिपल से यह पूछने गये कि भविष्य में क्या करें, तो उनके प्रिंसिपल ने कहा,-‘तुम्हारी आवाज सुन कर तो यही लगता है कि तुम्हे या तो नेता बनना चाहिए या अभिनेता। और सोहराब अभिनेता बन गये। उनकी आवाज की तरह बुलंद थी। अंधे तक उनकी फि़ल्मों के संवाद सुनने जाते थे। 16 वर्ष की उम्र में वे ग्वालियर के टाउनहाल में फि़ल्मों का प्रदर्शन करते थे। बाद में अपने भाई रुस्तम की मदद से उन्होंने ट्रैवलिंग सिनेमा का व्यवसाय शुरू किया।
फिर अपने भाई के साथ ही उन्होंने बंबई में स्टेज फि़ल्म कंपनी की स्थापना की। इस कंपनी की पहली फि़ल्म 1953 में बनी ‘खून का खून थी, जो उनके नाटक ‘हैमलेट का फि़ल्मी रूपांतर थी। इसमें सायरा बानो की मां नसीम बानो पहली बार परदे पर आयीं। ‘सैद –ए-हवस (1936) भी नाटक ‘किंग जान पर आधारित थी। सोहराब मूलत: नाटक से आये थे, यही वजह है कि उनकी पहले की फि़ल्मों में पारसी थिएटर की झलक मिलती है। ऐतिहासिक फि़ल्में बनाने में वे सबसे आगे थे।
 उन्होंने सेंट्रल स्टूडियो के लिए ‘परख और शैली फि़ल्म्स के लिए ‘मीनाकुमारी की अमर कहानी बनायी। भारत की पहली टेकनीकलर फि़ल्म ‘झांसी की रानी उन्होंने बनायी थी। इसके लिए वे हालीवुड से तकनीशियन और साज-सामान लाये थे। इसमें ‘झांसी की रानी बनी थीं उनकी पत्नी महताब। सोहराब मोदी राजगुरु बने थे। इस फि़ल्म को उन्होंने बड़ी लगन से बनाया था, लेकिन फि़ल्म फ़्लॉप हो गयी। इस विफलता से उबरने के लिए उन्होंने ‘मिर्जा गालिब (सुरैया-भारतभूषण) बनायी। यह फि़ल्म व्यावसायिक तौर पर तो सफल रही बल्कि इसे राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक भी मिला। उन्होंने सामाजिक समस्याओं पर भी कुछ यादगार फि़ल्में बनायीं। इनमें शराबखोरी की बुराई पर बनायी गयी फि़ल्म ‘मीठा जहर और तलाक की समस्या पर ‘डाईवोर्स उल्लेखनीय हैं। उनकी सर्वाधिक चर्चित और सफल ऐतिहासिक फि़ल्म थी ‘पुकार। इसमें चंद्रमोहन (जहांगीर), नसीम बानो (नूरजहां), सोहराब मोदी (संग्राम सिंह) और सरदार अख्तर की प्रमुख भूमिकाएं थीं। इस फि़ल्म को न सिर्फ प्रेस बल्कि दर्शकों से भी भरपूर प्रशंसा मिली।
‘सिकंदर में पोरस और ‘पुकार में संग्राम सिंह की भूमिका में सोहराब मोदी के अभिनय की बड़ी प्रशंसा हुई। महताब से उनकी शादी 21 अप्रैल 1946 को हुई, लेकिन मोदी का परिवार उन्हें बहू के रूप में स्वीकारने को तैयार नहीं था इसलिए कई साल उन्हें अलग रहना पड़ा। 1950 में उनके परिवार ने उनकी शादी को स्वीकार कर लिया। 1978 तक आते-आते 80 साल के मोदी साहब को चलने-फिरने में छड़ी का सहारा लेना पड़ गया था। उनकी बड़ी ख्वाहिश थी ‘पुकार को फिर से बनाने की। लेकिन बीमारी ने ऐसा नहीं करने दिया। 1983 में उन्होंने अपनी आखिरी फि़ल्म ‘गुरुदक्षिणा का मुहूर्त किया था। 1984 में डॉक्टरों ने यह घोषित कर दिया कि उन्हें कैंसर है। तब तक उन्हें खाना निगलने में भी तकलीफ होने लगी थी।   28 जनवरी 1984 को मोदी हमेशा के लिए चिरनिद्रा में निमग्न हो गये। वे बड़े आला तबीयत के इंसान थे। उनका धैर्य भी अपार था। कई बार कलाकार कई रिटेक देते, पर मोदी साहब के चेहरे पर शिकन तक नहीं पड़ती।
1983 रजिय़ा सुल्तान 1979 घर की लाज 1971 ज्वाला 1971 एक नारी एक ब्रह्मचारी 1958 जेलर 1958 यहूदी 1956 राज हठ 1955 कुंदन 1952 झांसी की रानी 1950 शीश महल 1943 पृथ्वी वल्लभ 1941 सिकन्दर 1939 पुकार 1938 जेलर 1935 ख़ून का ख़ून। सोहराब मोदी ने 1935 में स्टेज फि़ल्म कंपनी की स्थापना की थी। 1936 में स्टेज फि़ल्म कंपनी मिनर्वा मूवीटोन हो गयी और इसका प्रतीक चिह्न शेर हो गया। अपने इस बैनर में उन्होंने जो फि़ल्में बनायीं वे थीं-आत्म तरंग खान बहादुर 1937 डाइवोर्स जेलर मीठा जहर 1938 पुकार 1939 भरोसा 1940 सिकंदर 1941 फिर मिलेंगे 1942 पृथ्वी वल्लभ1943 एक दिन का सुलतान 1945 मंझधार 1947 दौलत 1949 शीशमहल 1950 झांसी की रानी 1953 मिर्जा गालिब 1954 कुंदन 1955 राजहठ 1956 नौशेरवा-ए-आदिल 1957 मेरा घर मेरे बच्चे 1960 समय बड़ा बलवान 1969। 

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