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Showing posts from March, 2019

जगदीप

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सूरमा भोपाली’ सईद इश्तियाक अहमद जाफरी उर्फ जगदीप  को उनके नाम से कम बल्कि शोले के ‘सूरमा भोपाली’ के रूप में लोग ज्यादा जानते हैं ।  लोग जगदीप को  याद करते हैं तो शोले में निभाया गया यह किरदार कभी नहीं भूलते. सूरमा भोपाली का रोल इतना फेमस हुआ कि इसी नाम से जगदीप ने  फिल्म का निर्देशन भी कर दिया। जगदीप ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में बी आर चोपड़ा की फिल्म ‘अफसाना’ से की थी। इसके बाद चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में ही उन्होंने ‘लैला मजनूं’ में काम किया। जगदीप ने कॉमिक रोल बिमल रॉय की फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ से करने शुरू किए थे। फिल्मों में जगदीप ने कई फनी डायलॉग्स भी बोले हैं। जगदीप का हाव भाव काफी अलग है. अपने हाव भाव से दर्शकों को हंसाने वाले जगदीप ने जब अपना यह अंदाज अपनाया था उस समय यह काफी ट्रिपिकल था। उन्होंने उस दौर में काम किया जब फिल्म उद्योग में महमूद, जॉनी वाकर, घूमल, केश्टो मुखर्जी  बड़े बड़े कॉमेडियन मौजूद थे।  300 से भी ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके जगदीप ‘शोले’, पुराना मंदिर , अंदाज अपना-अपना , फिर वही रात...

उत्पल दत्त

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“अच्छाआ…”  उत्पल दत्त का जन्म 29 मार्च, 1929 को पूर्वी बंगाल (ब्रिटिश भारत) के बारीसाल में  में हुआ था। इ नके ‌पिता का नाम गिरिजारंजन दत्त था। इन्होंने अपनी पढ़ाई कलकत्ता से की और 1945 में मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर 1949 में ‘सेंट जेवियर कॉलेज’, कलकत्ता अब कोलकाता से अंग्रेज़ी साहित्य से ग्रेजुएशन की । उत्पल दत्त ने थिएटर और फ़िल्म एक्ट्रेस शोभा सेन से  1960 में शादी की। व उन्हें  बेटी हुई जिसका नाम डॉक्टर बिष्णुप्रिया है । अभिनेता के रूप में उत्पल दत्त ने लगभग हर किरदार को निभाया। हिन्दी पर्दे पर कभी पिता तो कभी चाचा, कहीं डॉक्टर तो कहीं सेठ, कभी बुरे तो बहुधा अच्छे बने ‘उत्पल दा’ को दर्शक किसी भी रूप में नहीं भूल सकेंगे। अमिताभ बच्चन की प्रथम फ़िल्म ‘सात हिन्दुस्तानी’ में वे भी एक ‘हिन्दुस्तानी’ थे। बल्कि एक तरह से देखा जाय तो उत्पल जी ही मुख्य भूमिका में थे और अमिताभ बच्चन समेत अन्य सभी कलाकार सहायक थे! उसी तरह से ’70 के दशक में भारतीय समांतर सिनेमा की नींव जिन फ़िल्मों से रखी गई थी, उन प्रमुख कृतियों में ‘भुवन शोम’ भी थी और उसके नायक भी उत्पल द...

Indrani Mukherjee

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Indrani Mukherjee is an film actress, who worked in Hindi cinema in the 1960s-1970s, and is known for films like Usne Kaha Tha (1960), Aakhri Khat (1966), Parvarish (1977) , Dharam Veer (1977), and Des Pardes (1978). Apart from Hindi films Indrani has also acted in Marathi films like Apradh. Indrani Mukherjee born(1st March) and brought up in Allahabad. She started taking part in Hindi radio plays at All India Radio, Allahabad Her elder sister Maya was already an actress in Bengali cin ema, when she happened to enter a beauty competition, wherein actress Nutan and Shobhana Samarth were judges. Thereafter she was screen tested by Bimal Roy, which lead to her debut with Usne Kaha Tha (1960) directed by Moni Bhattacharjee and produced by Roy, with Sunil Dutt and Nanda as the leads. Her next film was Dharmaputra opposite Shashi kapoor directed by Yash Chopra, and which won the National Film Award for Best Feature Film in Hindi Her next big film was war film, Haqeeqat (1964) directed by...

मुनमुन सेन

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मुनमुन सेन (28-03-1958) बीते दौर की एक्ट्रेस सुचित्रा सेन की बेटी हैं। सुचित्रा सेन हिदीं और बांग्ला फिल्मों की मशहूर अदाकार थीं।यही वजह है कि मुनमुन ने भी अभिनय की दुनिया में अपनी किस्मत आजमाई। मुनमुन सेन ने हिंदी के अलावा बांग्ला, तमिल, तेलगु, मलयालम, कन्नड़ और मराठी भाषा की फिल्मों में भी काम किया है। इनके बाद इनकी बेटियों (मुनमुन सेन की बेटियां राइमा और रिया सेन) ने भी इनके नक्‍श-ए-कदम पर चलते हुए फ़िल्म जगत में एंट्री ले ली. ऐसे में जहां एक ओर इनकी बेटी रिया को इन्‍हीं की तरह बोल्‍ड इमेज के लिए जाना जाता है, वहीं राइमा को उनकी ग्रांड मां सुचित्रा की तरह वर्सेटायल एक्‍ट्रेस के रूप में जाना जाता है.मुनमुन सेन  की शिक्षा शिलॉन्ग और कलकत्ता अब कोलकाता में हुई। वो आर्ट के साथ ही सोशल एक्टिविटीज में भी काफी आगे रहती हैं, यही वजह है कि उन्होंने शादी से पहले ही एक बच्चे को गोद ले लिया था। अक्सर ऐसा कहा जाता है कि शादी के बाद हीरोइन का करियर खत्म हो जाता है लेकिन मुनमुन सेन ने अपने करियर की शुरुआत न सिर्फ शादी, बल्कि एक बेटी की मां बनने के बाद की। उन्होंने 1978 में त्रिपुरा की रॉय...

एक पहेली रेखा

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भानुरेखा गणेशन उर्फ रेखा को हिन्दी फिल्म की सबसे अच्छी अभिनेत्रियों में से एक माना जाता है। वैसे तो रेखा ने अपने  फिल्म  जीवन की शुरुआत बतौर एक बाल कलाकार तेलुगु फिल्म रंगुला रत्नम से कर दी थी, लेकिन हिन्दी सिनेमा में उनकी प्रविष्टि 1970 की फिल्म सावन भादों से हुई। रेखा के नाम से मशहूर हिन्दी सिनेमा की सदाबहार अदाकारा भानुरेखा गणेशन की खूबसूरती और बेजोड अदाकारी ़आज भी बरकार है। निजी जिंदगी हो या पेशेवर जिंदगी, रेखा ने दोनों में ही काफी संघर्ष किया है। 10 अक्टूबर, 1954 को मद्रास (अब चेन्नई) में जन्मी रेखा के पिता जेमनी गणेशन मशहूर तमिल अभिनेता और मां पुष्पावल्ली तेलुगू अभिनेत्री थीं। रेखा को अपने पिता से शुरुआत से ही कोई लगाव नहीं था। एक साक्षात्कार में रेखा ने कहा था, मेरे लिए फादर शब्द का कोई अर्थ नहीं है। मेरे लिए फादर है का मतलब चर्च का फादर है।  रेखा ने 1966 में तेलुगू फिल्म रंगुला रत्नम से अभिनय की शुरुआत की थी। फिल्म में उन्होंने बाल कलाकार की भूमिका निभाई थी। रेखा को फिल्मों में आने में दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण ...

बंटवारे उन्हें कभी गवारा न थे

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फ़ारुख़ शेख़ अभिनेता, समाज-सेवी और  टेलीविजन प्रस्तोता थे।  कला सिनेमा में अपने कार्य के लिए प्रसिद्ध थे जिसे समानांतर सिनेमा भी कहा जाता है। उन्होंने सत्यजित राय और ऋषिकेश मुखर्जी जैसे  महान फि़ल्म निर्देशकों के निर्देशन में भी काम किया। फि़ल्मों के माध्यम से अपनी छवि को आमजन से जोडऩे वाले फ़ारुख़ शेख़ का जन्म 25 मार्च, 1948 को अमरोली (गुजरात ) में मुस्तफ़ा और फऱीदा शेख़ के परिवार में हुआ। उनका नाता  जमींदार परिवार से था। फ़ारुख़ शेख़ अपने पांच भाइयों में सबसे बड़े थे। मुंबई के सेंट मैरी स्कूल में शुरुआती शिक्षा ग्रहण करने के साथ ही उन्होंने यहां के सेंट जेवियर्स कॉलेज में आगे की पढ़ाई की। बाद में उन्होंने सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ लॉ से कानून की पढ़ाई की। फ़ारुख़ स्कूली दिनों से न केवल क्रिकेट के दीवाने थे, बल्कि अच्छे क्रिकेटर भी थे। उन दिनों  के विख्यात टेस्ट क्रिकेटर वीनू मांकड़ सेंट मैरी स्कूल के दो सर्वश्रेष्ठ क्रिकटरों को हर साल कोचिंग देते थे और हर बार उनमें से एक फ़ारुख़ हुआ करते थे। जब वह सेंट जेवियर कॉलेज में पढऩे गए तो उनका खेल और...

नंदा अविवाहित थीं

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नन्दा  प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। उन्होंने हिन्दी और मराठी फि़ल्मों में  कार्य किया। अपने समय की ख़ूबसूरत अभिनेत्रियों में नन्दा का नाम भी लिया जाता है। चेहरे पर भोलापन, बड़ी-बड़ी आँखें, गुलाबी होंठ, ये सब नन्दा की विशेषताएँ थीं। 60 और 70 के दशक की इस सुन्दर और मासूम अदाकारा ने अपने फि़ल्मी सफऱ की शुरूआत  बाल कलाकार के रूप में की थी। बाद में वे सफल नायिका बनीं और फिर चरित्र अभिनेत्री। अपने संवेदनशील अभिनय से उन्होंने कई फि़ल्मों में अपनी भूमिकाओं को बखूबी जीवंत किया। नन्दा का जन्म 8 जनवरी,1938 में कोल्हापुर में हुआ था। इनके पिता का नाम विनायक दामोदर था, जो मराठी फि़ल्मों के  सफल अभिनेता और निर्देशक थे। विनायक दामोदर ‘मास्टर विनायक के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे। नन्दा अपने घर में सात भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। उनको अपने पिता का प्यार अधिक समय तक नहीं मिल सका। उनकी बाल्यावस्था में ही पिता का देहांत हो गया था। इसके बाद नन्दा के परिवार ने बड़ा कठिन समय व्यतीत किया। नृत्य और अभिनय का शौक़ नन्दा को बचपन से ही था। जब वे मात्र छह: साल की थीं, तभी उनके पिता ...

कली के रूप में चली हो धूप में कहाँ ?

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  Nau Do Gyarah  (1957) was the last film that  Kalpana Kartik  (real name :  Mona Singh,  also real life Mrs Dev Anand) acted. In all she acted in 6 films, with Dev Anand in all these six films starting with Baazi (1951) followed by Aandhiyan (1952), Humsafar (1953), Taxi Driver (1954), House No. 44 (1954) and Nau Do Gyaraah (1957). Nau Do Gyarah was directed by Vijay Anand, his first as director. The film had music by Sachin Dev Burman. This has playback by Mohammad Rafi and Asha Bhosle.  कली के रूप में चली हो धूप में कहाँ? सुनो जी महरबाँ, होगे न तुम जहाँ, वहाँ क्या है कहो जळी, कि हम तो हैं चल दी अपने दिल के सहारे अब न रुकेंगे तो दुखने लगेंगे पाँव नाज़ुक तुम्हारे राह में हो के गुम, जाओगे छुप के तुम, कहाँ? सुनो जी महरबाँ, होगे न तुम जहाँ, वहाँ चल न सकेंगे सम्भल न सकेंगे हम तुम्हारी बला से मिला न सहारा तो आओगी दुबारा खिंच के मेरी सदा पे छोड़ो दीवानापन, अजी जनाब मन कहाँ? सुनो जी महरबाँ, होगे न तुम जहाँ, वहाँ मानोगे न तुम भी तो ए लो चले हम भी अ...

होली गीतों के सरताज

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1952 आन ‘खेलो रंग हमारे संग’।  संगीतकार नौशाद गीतकार- शकील बदायूनी , 1957 मदर इंडिया ” होली आई रे कन्हाई ” संगीतकार नौशाद- गीतकार शकील बदायूनी, 1960 कोहिनूर ” तन रंग लो जी आज मन रंग लो” संगीतकार नौशाद- गीतकार शकील बदायूनी,1966 फूल और पत्थर ” लाई है हजारों रंग होली” संगीतकार रवि- गीतकार शकील बदायूनी- शकील बदायूंनी ने फ़िल्म जगत में 1947 की फ़िल्म ’दर्द’ से क़दम रखा और अपने जीवन के अन्तिम  समय तक फ़िल्म-संगीत की सेवा करते रहे। 1952 की फ़िल्म ’बैजु बावरा’ में जब शकील बदायूंनी, नौशाद अली और मोहम्मद रफ़ी ने मिल कर “मन तड़पत हरि दर्शन को आज” जैसी रचना का निर्माण किया, तब यह साम्प्रदायिक सदभाव का मिसाल बन गया। आगे चल कर भी शकील साहब ने श्री कृष्ण और राधा से संबंधित कई गीत लिखे। 1954 की फ़िल्म ’अमर’ में “राधा के प्यारे कृष्ण कन्हाई, तेरी दुहाई तेरी दुहाई” से इसकी शुरुआत हुई थी। और फिर जब उनकी कलम से होली के लिए गीत लिखे गए, तब उनमें केवल रंगों का ही नहीं बल्कि राधा-कृष्ण के रास का उल्लेख करते हुए इन गीतों को अमर कर दिया। शकील का लिखा पहला होली गीत था फ़िल्म ’मदर...

अलका याज्ञिक

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अलका याज्ञिक प्रसिद्ध पार्श्वगायिका हैं। वे हिंदी सिनेमा में तीन दशकों तक अपनी गायकी के लिए विख्यात हैं। हिंदी सिनेमा में वे सबसे ज्यादा गाने रिकॉर्ड करने वाली पांचवी पार्श्वगायिका हैं। उन्हें फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका पुरस्कार के 36 नामांकनों में से 7 बार पुरस्कार मिल चुका है जो कि खुद में एक रिकॉर्ड है। उन्हें दो राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त है। साथ ही उनके 20 गाने बीबीसी के “बॉलीवुड के श्रेष्ठ 40 सदाबहार साउंडट्रैक” में शामिल हैं। उनके कुछ हिट गानों में से हैं — “कुछ कुछ होता है”, “टिप टिप बरसा पानी”, “परदेसी परदेसी”, “छम्मा छम्मा”, “पूछो ज़रा पूछो”, “एक दो तीन”, “चाँद छुपा बादल में”, “लाल दुपट्टा”, “मुझको राणाजी” और “बाज़ीगर ओ बाज़ीगर”। अलका 20 मार्च 1966 को कलकत्ता अब कोलकाता में गुजराती परिवार में पैदा हुई। उस की माता शोभा याज्ञिक गायक थीं। इन्होंने ने 6 साल की उम्र में ही कलकत्ता अब कोलकाता रेडियो के लिए गाना शुरू कर दिया था। 10 साल की उम्र में वो बम्बई अब मुंबई स्थानांतरित हो गयीं और वहीं से वो गायन के क्षेत्र में तरक्की की राह पर अग्रसर हु...

पिया संग खेलो होरी

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On the occasion of Holi I was looking for an appropriate song. I wanted to avoid the songs that one hears every Holi -  Rang barse   (Silsila),  Holi ke din dil  (Sholey),  Aaj na chhodenge  (Kati Patang), ...   Here is a good Holi song that somehow has been forgotten- an S D Burman composition for the film  Phagun  (1973). We see Waheeda Rehman and Dharmendra playing Holi. The video seems incomplete but could not locate a better one. The lyrics are by Majrooh Sultanpuri. पिया संग खेलो होरी पिया संग खेलो पिया संग खेलो होरी फागुन आयो रे हो फागुन आयो रे चुनरिया भिगो ले गोरी फागुन आयो रे हो फागुन आयो रे देखो जिस ओर मच रहा शोर गली मे अबीर उडे हवा मे गुलाल कहिं कोइ हाय तन को चुराये चली जाये जैसे गाडी पूछ जाये हाल करे कोई जोरा जोरि करे कोई जोरा जोरि फागुन आयो रे हो फागुन आयो रे कोइ कहे सजनी सुनो पुकार बरस बाद आये तोहरे दुवार आज तो मोरी गेन्दे की कली होली के बहाने मिलो एक बार तन पे है रंग मन पे है रंग किसी मतवारे ने क्या रंग दियो डार उय...

मेरे पास आओ नज़र तो मिलाओ

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A nice song by Lata Mangeshkar from the film Sunghursh (1968). Music is by Naushad.  Naushad, who had been a leading composer for over 20 years, was at the end of his era- after  Sunghursh , he did not have a musical hit. He was not old then, he was not even 50 - having tasted success rather early with Rattan (1944).  The film had Vyjayanthimala and Dilip Kumar in lead role and was based on a short story  Layli Asmaner Ayna  in Bengali by Jnanpith Award-winning writer Mahasweta Devi.   This was the last film that Vyjayanthimala and Dilip Kumar did together.  मेरे पास आओ नज़र तो मिलाओ

फिर वोही शाम वही ग़म वही तनहाई है

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  Talat Mahmood and Madan Mohan excel in this song from  Jahan Ara  (1964). The movie had several great songs including Main Teri Nazar Ka Suroor Hoon  and  Teri Aankh Ke Ansoo  by Talat and  Woh Chup Rahen To Mere  and  Haal-E-Dil Yoon Unhe Sunaayaa Gayaa  by Lata. Jahan Ara was the daughter of Shah Jahan and the story is about her love for Mirza Yusuf Changezi, which she had to give up as she was a Mughal princess. It had Prithiraj Kapoor playing the role of Shah Jahan and Mala Sinha playing Jahan Ara and Bharat Bhushan playing Mirza.  Music is composed by Madan Mohan and lyrics are by Rajinder Krishan.  However, the movie was a big flop.  फिर वोही शाम वही ग़म वही तनहाई है दिल को समझाने तेरी याद चली आई है फिर तसव्वुर तेरे पहलू में बिठा जाएगा फिर गया वक़्त घड़ी भर को पलट आएगा दिल बहल जाएगा आखिर ये तो सौदाई है फिर वोही शाम ... जाने अब तुझ से मुलाक़ात कभी हो के न हो जो अधूरी रहे वो बात कभी हो के न हो मेरी मंज़िल तेरी मं...

गरीबों का राजेश खन्ना

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निर्माता-निर्देशक मोहन सहगल ने अपनी फिल्म ‘सावन भादो’ के जरिये दो नए कलाकारों को अवसर दिया। अभिनेत्री रेखा कुछ साउथ की फिल्म कर चुकी थीं और हिंदी फिल्मों में पदार्पण कर रही थी। उनके नायक थे नवीन निश्चल। मोहन सहगल को उनके शुभचिंतकों ने कहा कि यह जोड़ी बेमेल है। उस समय अभिनेत्री बनने के लिए पहली आवश्यकता होती थी कि रंग गोरा हो। रेखा साँवली होने के साथ-साथ बदसूरत दिखाई देती थी। दूसरी ओर नवीन निश्चल। नवीन निश्चल। एकदम गोरे-चिट्टे थे और उनकी त्वचा दमकती थी। मोहन सहगल ने किसी की बात नहीं सुनी और वही किया जो उनके दिल को अच्छा लगा। सावन भादो रिलीज हुई और बॉक्स ऑफिस पर सफल फिल्म साबित हुई। नवीन निश्चल को पहली ही फिल्म में कामयाबी मिली और बॉलीवुड को नया हीरो मिल गया।  नवीन निश्चल के घर निर्माताओं की लाइन लग गई और नवीन निश्चल ने बिना सोचे समझे ढेर सारी फिल्में साइन कर ली। 1971 में 6 फिल्में रिलीज हुई, जिसमें से बुड्ढा मिल गया को ही औसत सफलता मिली। नवीन निश्चल को समझ में आ गया कि उन्होंने गलती की है, लेकिन इसका उनके करियर पर गंभीर असर हुआ। नवीन निश्चल ने पहली फिल्...

बातें लंबीं मतलब गोल

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शादियों में दो फिल्मी गीत अनिवार्य रूप से बजते है। विदाई के समय मोहम्मद रफी का गाया गीत ‘बाबुल की दुआएं लेती जा’ और बारात के समय मोहम्मद रफी का ही गया गीत ‘आज मेरे यार की शादी है’।आदमी सड़क का के लिए यह गाना लिखा था वर्मा मलिक ने। पंजाबी फिल्मों में गीत लिखकर करियर शुरू करने वाला यह गीतकार एक समय में वक्त की धुंध में खो गया, क्योंकि हिंदी फिल्मों में आकाश पाने की जद्दोजहद करते करते वर्मा मलिक हताश हो चुके थे। अकसर अचानक एक घटना जीवन की धारा बदल देती है और वर्मा मलिक के साथ भी ऐसा ही हुआ। वर्मा मलिक का पूरा नाम बरकत राय मलिक था। उनका जन्म 13 अप्रैल, 1925 को फ़िरोज़पुर, ब्रिटिश भारत में हुआ था। बहुत कम उम्र में ही उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था। वो दौर आज़ादी की लड़ाई का था। स्कूल में पढ़ रहे बरकत राय मलिक  अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ गीत लिखकर कांग्रेस के जलसों और सभाओं में सुनाया करते थे। वह कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्य बन गए। इसका अंजाम यह हुआ कि उन्हें गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया, लेकिन कम उम्र होने की वजह से वो जल्द ही रिहा भी कर दिए गए। वह अपने ग...