इतना सन्नाटा क्यों है भाई




 अवतार किशन हंगल हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता एवं दूरदर्शन कलाकार थे। 1966 से हिन्दी फिल्म उद्योग का हिस्सा रहे हंगल ने लगभग 225 फिल्मों में काम किया। उन्हें फिल्म परिचय और शोले में अपनी यादगार भूमिकाओं के लिए जाना जाता है।
 स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले ए.के. हंगल का जन्म 1 फरवरी 1917 को कश्मीरी पंडित परिवार में  पंजाब के सियालकोट में हुआ था। इनका पूरा नाम अवतार किशन हंगल था। कश्मीरी भाषा में हिरन को हंगल कहते हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा में कई यादगार रोल अदा किए।  1966 में उन्होंने हिंदी सिनेमा में कदम रखा और 2005 तक 225 फिल्मों में काम किया। राजेश खन्ना के साथ उन्होंने 16 फिल्में की थी। हंगल साहब उर्दू भाषी थे। उन्हें हिंदी में स्क्रिप्ट पढ़ने में परेशानी होती थी। इसलिए वे स्क्रिप्ट हमेशा उर्दू भाषा में ही मांगते थे।
कश्मीरी ब्राह्मणों का यह परिवार बहुत पहले लखनऊ में बस गया था। लेकिन हंगल साहब के जन्म के डेढ़-दो सौ साल पहले वे लोग पेशावर चले गये थे। इनके दादा के एक भाई थे जस्टिस शंभुनाथ पंडित, जो बंगाल न्यायालय के प्रथम भारतीय जज बने थे। हंगल साहब के पिता उन्हें पारसी थियेटर दिखाने ले जाया करते थे। वहीं से नाटकों के प्रति शौक उत्पन्न हुआ। हंगल साहब शुरुआती दौर से ही कभी किसी काम को छोटा नहीं समझते थे। इनका बचपन पेशावर में गुजरा, यहां उन्होंने थिएटर में अभिनय किया। इनके पिता का नाम पंडित हरि किशन हंगल था। अपने जीवन के शुरुआती दिनों में, जब वे कराची में रहते थे, वहां उन्होंने टेलरिंग का काम भी किया है। पिता के सेवानिवृत होने के बाद पूरा परिवार पेशावर से कराची आ गया। 1949 में भारत विभाजन के बाद ए.के. हंगल मुंबई चले गए।
21 की उम्र में 20 रुपये लेकर पहली बार मुंबई आए थे। ये बलराज साहनी और कैफी आजमी के साथ थिएटर ग्रुप आईपीटीए के साथ जुड़े थे। उन्होंने इप्टा से जुड़ कर अपने नाटकों के मंचन के माध्यम से सांस्कृतिक चेतना जगायी। हंगल साहब पेंटिंग भी करते थे। उन्होंने किशोर उम्र में ही एक उदास स्त्री का स्केच बनाया था और उसका नाम दिया चिंता। वे हमेशा अपनी फघ्ल्मिों से ज्यादा अपने नाटक को अहमियत देते थे और मानते थे कि जघ्ंिदगी का मतलब सिर्फ अपने बारे में सोचना नहीं है। वे हमेशा कहते थे कि चाहे कुछ भी हो जाये,ं। ‘मैं एहसान-फरामोश और मतलबी नहीं बन सकता।’ भारत की आजादी की लड़ाई में भी इनकी भागीदारी थी। 1930-47 के बीच स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे। दो बार जेल गए। हंगल तीन साल जेल में रहे।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पेशावर में काबुली गेट के पास  बहुत बड़ा प्रदर्शन हुआ था, जिसमें हंगल साहब भी उपस्थित थे। अंग्रेजों ने अपने सिपाहियों को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का हुक्म दिया था, लेकिन चंदर सिंह गढ़वाली के नेतृत्व वाले उस गढ़वाल रेजिमेंट की टुकड़ी ने गोली चलाने से इनकार कर दिया। यह  विद्रोह था। चंदर सिंह गढ़वाली को जेल में डाला गया। हंगल साहब को दुख था कि चंदर सिंह गढ़वाली को ‘भारत रत्न’ नहीं मिला। भारत मां का यह वीर सपूत 1981 में गुमनाम मौत मरा। पेशावर में हुआ नरसंहार उसी काबुल गेट वाली घटना के बाद हुआ था। उस वक्त अंग्रेजों ने अमेरिकी से गोलियां चलवाई थी। हंगल साहब ने अपनी आंखों से यह सब देखा था। यही वजह रही कि वे थियेटर से जुड़ने के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक आंदोलनों को लेकर हमेशा सजग रहते थे।
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी से बचाने के लिए चलाये गये हस्ताक्षर अभियान में भी वे शामिल थे। किस्सा-ख्वानी बाजार नरसंहार के दौरान उनकी कमीज खून से भीग गयी थी। हंगल साहब कहते थे, ‘वह खून सभी का था-हिंदू, मुस्लिम, सिख सबका मिला हुआ खून!’ छात्र जीवन से ही वे बड़े क्रांतिकारियों की मदद में जुट गये थे। बाद में उन्हें अंग्रेजों ने तीन साल तक जेल में भी रखा, फिर भी वे अपने इरादे से नहीं डिगे। ए.के. हंगल 50 वर्ष की उम्र में हिंदी सिनेमा में आए।
उन्होंने 1966 में बासु चटर्जी की फिल्म तीसरी कसम और शागिर्द में काम किया। इसके बाद उन्होंने सिद्घांतवादी भूमिकाएं निभाई। 70, 80 और 90 के दशकों में उन्होंने प्रमुख फिल्मों में पिता या अंकल की भूमिका निभाई। हंगल ने फिल्म शोले में रहीम चाचा (इमाम साहब) और शौकीन के इंदर साहब के किरदार से अपने अभिनय की छाप छोड़ी। इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) के साथ बढ-चढ़कर काम करने वाले हंगल ने 139 से अधिक फिल्मों में अपने अभिनय कौशल का लोहा मनवाया है।
इनके प्रमुख रोल फिल्म नमक हराम, शौकीन, शोले, आईना, अवतार, अर्जुन, आंधी, तपस्या, कोरा कागज, बावर्ची, छुपा रुस्तम, चितचोर,बालिका वधू, गुड्डी, नरम-गरम में रहे। इनके बाद के समय में यादगार किरदारों में 2002 में शरारत, 1997 में तेरे मेरे सपने और 2005 में आमिर खान के साथ लगान में नजर आए थे। 2006 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मभूषण से नवाजा। टीवी सीरियल में उपस्थिति 1997 में बॉम्बे ब्लू 1998 में जीवन रेखा 1986 में मास्टरपीस थिएटर लार्ड माउंटबेटन 1996 में चंद्रकांता 1993-94 में जबान संभाल के में छोटी भूमिका 2004-05 में होटल किंग्सटन में छोटी भूमिका 2012 में धारावाहिक कलर्स चैनल के धारावाहिक मधुबाला में विशेष उपस्थिति रही। हंगल लम्बे समय से बुढ़ापे की बीमारियों से पीड़ित रहे। बॉलीवुड के सबसे वयोवृद्ध अभिनेता ए. के. हंगल का 26 अगस्त 2012 को  मुंबई के आशा पारेख अस्पताल में निधन हो गया था।
95 साल के हंगल को 16 अगस्त को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 13 अगस्त को हंगल गिर गए थे। पीठ में चोट लगने और कूल्हे की हड्डी टूटने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ उनकी सर्जरी हुई। सर्जरी होने के बावजूद उनती सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ। बाद में पता चला कि उन्हें सीने में दर्द और सास लेने में तकलीफ है। इसके बाद उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया, लेकिन उनकी सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ।

Comments

Popular posts from this blog

हिंदी सिनेमा की वीनस थी -मधुबाला

Indrani Mukherjee

कविवर प्रदीप